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स्त्री की बेबसी

आज कलम लिखने तैयार नही स्त्री की बेबसी

  रोते  रोते   आज   कलम   ने 
 कुछ     आँसू    टपकाये    हैं 
 रोते     रोते     अंतर्मन      ने 
 फिर  से    प्रश्न    उठाये     हैं 

 मूल  कहाँ   है  अपराधों  की 
भूल   कहाँ    है   मानव  की
आँगन    कैसे  शूल   उगे   हैं 
 प्रवृतियां  ले     दानव     की 

 युगों  युगों  से  श्रेष्ठ  रहा  जो
 क्या  यह   वो   ही  भारत  है 
 कौना  कौना   चीख  रहा  है 
 हाय!  यह   कैसी  हालत  है 

 बलात्कार   जैसे   जुर्मों   पर  
 राजनीति    के     आदी    हैं
 मेरी   नज़रों   में    वो    सारे 
 उतने     ही    अपराधी     हैं 

 दैत्य-भीड़   हत्या   कर   देती 
 संतों     की     चौराहों     पर 
 अरे!  वेदना   शब्द   न   फूटे 
 प्रशासन    के,   आहों     पर 

 यही  सियासत अपराधों  का 
पल  पल   पोषण  करती   हैं 
स्वार्थसिद्धि  में  अंधी  होकर 
 दोषारोपण       करती       है 

 बाकी    कसरें    पूरी   करती 
 न्यायिक   लचर  व्यवस्था   है 
 अपराधी,  पर्याप्त  समय   है 
 ढूंढ   अगर   कुछ    रस्ता   है 

 नोट   वोट   के   राजतंत्र   में 
 संरक्षण      पा      जाते    हैं 
 स्यारों   में  भी   पुनः भेड़ियों 
 के   लक्षण    आ   जाते    हैं 

 कठुआ  सूरत  पटना  दिल्ली 
 फिर     दोहरायी    जाती   है 
 फिर  कोई  निर्भया आसिफ़ा 
सहज    उठाई     जाती     हैं 

 तेलंगाना,   कभी    अलीगढ़ 
 कभी    हाथरस    घटता   है 
 शासन और  प्रशासन केवल 
कुछ   दिन   पृष्ठ  पलटता  है 
 आनन-फानन चिता जलाकर 

 सत्य     जलाया    जाता    है 
 कोई   तर्जनी   उठे  न   ऊपर 
 कृत्य     जलाया    जाता    है 
 ऐसा  लगता  जुर्म  आजकल 

 राजनीति     का    चारा     है 
 लाक्षागृह   सा   षड्यंत्री  यह 
 कैसा      तंत्र      हमारा     है 
 दुःशासन   दुष्कृत्य   बढ़े    हैं 

 और   वही      दुष्शासन    है 
भरी  सभा  मे   चीरहरण   है  
 मौन    आज   सिंहासन     है 
 धृतराष्ट्र    ने    मानो     कोई 

 ऐसी       पट्टी     बाँधी      हैं 
 वो  ही  केवल  नही  दीखता 
 जो    जघन्य    अपराधी   है 
 केशव भी कलयुग के  डर से 
अब    आने    में     डरते   हैं 

 इसीलिए  हर  रोज़  वकासुर 
 अब    बेख़ौफ़   विचरते    हैं 
 सुनो   द्रोपदी  इन   हाथों  में 
अब  तलवार   उठाओ   तुम 
 गिद्ध  तुम्हारी  तरफ   निहारें 
उनको    मार   गिराओ  तुम          


                           Suryajeet Singh "Tushar"

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3 Comments

🤫

08-Jul-2021 02:46 PM

वेल डन.... सूर्यजीत जी...कीप इट अप...

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Ravi Goyal

08-Jul-2021 02:43 PM

बहुत शानदार रचना 👏👏👏

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Author Pawan saxena

08-Jul-2021 02:43 PM

bohut achcha liha hai aapne

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